एक नजर। चेन्नई सुपरकिंग्स आईपीएल 2018 का सफर

चेन्नई सुपरकिंग्स के बारे में आज के दौर में कौन क्रिकेट प्रेमी नही जनता है, चाहे वो देश मे हो या विदेश में, या फिर ऐसे देशों में जहां क्रिकेट को एक खेल के तौर पे अपनाया जाने लगा हो, चेन्नई सुपरकिंग्स लगभग हर जगह प्रसिध्दि प्राप्त कर चुकी है।
3 बार आईपीएल के विजेता रहे इस टीम का सफर 2018 में काफी बेहतरीन रहा, लेकिन ये पिछले हर साल से बिल्कुल ही अलग था, आइये जानते है की ये सफर पिछले हर साल से अलग कैसे था।आईपीएल में जब खिलाड़ियों की नीलामी सम्पन्न हुवी थी उस समय मैच फिक्सिंग के आरोपो के कारण 2 साल के प्रतिबंध झेलने के बाद वापसी कर रही इस टीम को सबसे कमजोर टीमो में आंका जा रहा था क्योंकि यह टीम काफी बड़े उम्र के खिलाड़ियों से सजी हुवी थी। इस टीम की औसत आयु 34 वर्ष थी जो कि बाकी के किसी भी टीम से बहुत ही ज्यादा थी। टीम के कुछ शीर्ष खिलाड़ियों की उम्र देखे तो कप्तान महेंद्र सिंह धोनी 36 वर्ष, शेन वाटसन 37 वर्ष, सुरेश रैना 33 वर्ष, हरभजन सिंह 36 वर्ष, अम्बाती रायडू 33 वर्ष, ड्वेन ब्रावो 34 वर्ष, केदार जाधव 34 वर्ष फाफ डुप्लेसिस 35 वर्ष, शीर्ष खिलाड़ियों में सबसे कम उम्र के खिलाड़ी रविन्द्र जडेजा 29 वर्ष, एवं इस टीम के सबसे बड़े उम्र के खिलाड़ी या फिर कहे तो सबसे बुजुर्ग खिलाड़ी थे इमरान ताहिर 38 वर्ष के। लेकिन इसी सिक्के का एक दूसरा पहलू भी था कि ये टीम सबसे ज्यादा तजुर्बेदार टीम थी, जो कि इस टीम की महत्वपूर्ण ताकत थी, ये खिलाड़ी किसी भी तरह के दबाव को झेल सकते थे जो कि इस टीम के युवा खिलाड़ियों के लिए किसी वरदान से कम नही था। इसके कुछ उदाहरण भी देखने को मिले जैसे कि आईपीएल के पहले मैच में ही टीम के 8 विकेट गिरने के बावजूद ड्वेन ब्रावो की 60 रनों की शानदार पारी, सेमीफाइनल में फाफ डुप्लेसिस की उम्दा एवम यादगार पारी जिसमे 8 विकेट गिरने के बावजूद वो ओपनिंग से ले के अंतिम गेंद तक क्रीज़ पे रुक कर अपनी टीम को जीत दिला के ही वापिस लौटे, शेन वाटसन की फाइनल की यादगार पारी जिसमे उन्होंने पहली 10 गेंदों पे एक भी रन नही बनाया लेकिन उसके बाद मात्र 51 गेंदों में ही अपना शतक पूरा कर लिया, और 179 के लक्ष्य में 117 रनों का विशाल योगदान देकर अपनी टीम को जीत दिलवाई, और इनमें सबसे महत्वपूर्ण कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का योगदान रहा जिन्होंने लगभग पूरी श्रृंखला में बल्ले के साथ साथ कप्तानी करके भी टीम को दबाव की परिस्थितियों से दूर रखा।और इस टीम के खिलाड़ियों के बूढ़े होने का एक और फायदा ये भी था कि इनकी उपलब्धता सुनिश्चित थी क्योंकि अधिकांश खिलाड़ी अपने अंतरराष्ट्रीय टीमो से बाहर चल रहे थे, इनकी उपलब्धता पे पूरे सीरीज के लिए कोई संशय नही था अगर इनके साथ कोई चोट की समस्या नही आती तो, क्योंकि उम्र के कारण शायद चोट और अनफिट खिलाड़ियों का खतरा भी सबसे ज्यादा इसी टीम पर मंडरा रहा था। और अगर आपको याद हो तो शुरुआती कुछ मैचों में महेंद्र सिंह धोनी को कमर के दर्द से परेशान भी देखा गया, लेकिन अपनी समझदारी और सूझबूझ से उन्होंने खुद को आने वाले मैच के लिए जल्दी फिट कर लिया, जिसके बाद उन्होंने रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के खिलाफ अम्बाती रायडू के साथ मिलकर एक यादगार पारी खेलते हुवे अपनी टीम को जीत भी दिलाई, इसके अलावा भी उनकी बल्लेबाजी पूरे टूर्नामेंट में शानदार रही।
एक अन्य समस्या की बात करे तो चेन्नई को अपने होम ग्राउंड एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम को सिर्फ एक मैच के बाद ही बदल के पुणे के महाराष्ट्र क्रिकेट स्टेडियम ले जाना पड़ा, जहाँ अब उन्हें एक नए माहौल में खुद को ढालने की चुनौती थी, और इस चुनौती को उन्होंने बखूबी पूरा भी कर लिया जिसमे एक अहम भूमिका पुणे के क्रिकेटप्रेमियों ने भी निभाया इस टीम का बेजोड़ समर्थन करके। पुणे में मौजूद क्रिकेटप्रेमियों ने उनका हौसला पूरी श्रृंखला में बनाये रखा।
पुणे में हुवे 6 मैच में से 5 मैच चेन्नई सुपरकिंग्स ने जीते, सिर्फ एक मैच में उन्हें मुम्बई इंडियंस के हाथों हार झेलनी पड़ी।

इन सब के अलावा ये टीम मैच विनर्स से भड़ी हुवी टीम थी, भले ही वो दूसरे टीम के खिलाड़ियों से थोड़े बड़े उम्र के थे। इस टीम में मौजूद वरिष्ठ खिलाड़ियों पे नजर डाली जाए तो हरभजन सिंह और ईमरान ताहिर को छोड़ कर सब किसी ना किसी मैच में मैन ऑफ द मैच जरूर बने, यानी कि इस टीम का लगभग हर खिलाड़ी सही मौके पे टीम को जीत दिलाने की काबिलियत रखता था, युवा खिलाड़ियों में इस टीम ने बल्लेबाजो का उपयोग सिर्फ सैम बिलिंग्स के रूप में ही किया, उसके अलावा सिर्फ तेज़ गेंदबाज़ी के लिए युवा खिलाड़ियों को टीम में स्थान प्राप्त हुआ और अगर देखा जाए तो शायद तेज़ गेंदबाज़ी का डिपार्टमेंट वरिष्ठ खिलाड़ियों की देखरेख में युवाओ के हवाले होना एक बहुत ही बढ़िया एवम क्रांतिकारी कदम था जो कि आने वाले समय मे क्रिकेट में काफी चलन में होगा। इन तेज़ गेंदबाज़ों में कुछ अहम नाम थे शार्दूल ठाकुर, दीपक चाहड़, के एम आसिफ, और दक्षिण अफ्रीका के युवा खिलाड़ी लुंगी एंगीडी जो कि एक मैच में मैन ऑफ द मैच भी रहे।

वही फाइनल में उनके सामने सन राइजर्स हैदराबाद की बात करे तो कागज़ पे काफी युवा एवम मजबूत दिखने वाली ये टीम सिर्फ कुछ खिलाड़ियों के प्रदर्शन पे टिकी हुवी नजर आयी, जिनमे कुछ महत्वपूर्ण नाम थे, कप्तान केन विलियमसन, अफगानिस्तान के युवा स्पिन गेंदबाज राशिद खान, तेज़ गेंदबाज भुवनेश्वर कुमार,युवा तेज़ गेंदबाज़ सिद्धार्थ कॉल और शिखर धवन जो केवल एक मैच में मैन ऑफ द मैच बन सके दिल्ली डेयर डेविल्स के खिलाफ उसके अलावा उनका बल्ला पूरे श्रृंखला में कोई खास कमाल नही कर सका। इनके अलावा अगर बाकी के खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर नजर डाले तो वो औसत या औसत से कम ही रही।लेकिन सेमीफाइनल में राशिद खान के 34(10) रन और गेंदबाजी में अपने 4 ओवरों में मात्र 19 रन देकर 3 विकेट लेने के बाद फाइनल में दर्शको की सबसे ज्यादा नजर उन्ही पर थी, हालांकि सेमीफाइनल में कोलकाता नाइट राइडर्स के खिलाफ राशिद खान को मिले तीनो ही विकेट अनावश्यक शॉट खेलने के कारण प्राप्त हुवे, जिनमे क्रिस लीन स्वीप शॉट खेलते हुवे एल बी डब्लू, रोबिन उथप्पा रिवर्स स्वीप करते हुवे बोल्ड, और आंद्रे रसल तेज़ कट खेलने के प्रयास में स्लिप में कैच थमा बैठे। पर ये तीनो ही बैट्समैन काबिलियत भी रखते थे किसी भी गेंदबाज़ी की कमर तोड़ने की, इसीलिए फाइनल में इनके ऊपर नजर रहना लाज़मी भी था।लेकिन चेन्नई सुपरकिंग्स के तजुर्बे की दाद देनी चाहिए कि उनकी नजर भी उन्ही पर थी और चेन्नई सुपरकिंग्स ने राशिद खान की गेंदबाजी को संभल के खेलते हुवे उन्हें कोई विकेट नही देकर पूरे सन राइजर्स हैदराबाद के इरादों को तोड़ के रख दिया।फाइनल में शायद एक खिलाड़ी राशिद खान की आने वाली गेंदबाज़ी पे भरोसा करके भुवनेश्वर कुमार को पॉवरप्ले में ही 3 ओवर खत्म करवाने कप्तान केन विलियमसन को भारी पड़ गए।अंत मे अगर सारे आंकड़ो को देखे तो चेन्नई सुपरकिंग्स इस टूर्नामेंट में खेल से कम रणनीति से ज्यादा भारी रही दूसरे टीमो पे

सम्मी कुमार

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