जय हिंद दोस्तो

इस लेख को लिखने से पहले मैं अपने ऊपर चढ़ी राजनैतिक केचुली से बाहर निकल के देश के लिए विचार करने की प्रतिबद्धता को ध्यान में रख रहा हूँ। ऐसा जरूरी भी है क्योंकि अगर किसी राजनैतिक दल के विचारों को वस्त्र के तरह पहन के अगर कुछ भी लिखूंगा तो देश प्रेम का अपमान होगा।
आज जिधर देखो उधर लोग देश को भूल कर अपने अपने पसंदीदा पार्टी की भक्ति में लगे हुवे है ये जानते हुवे भी की वो पार्टी उनको खाने के लिए नही दे देगी। जबकि ये भारत माँ की भूमि अपने कोख से निकली हुवी अनाज रूपी संतान को हमारा भोजन बना के सहस्त्र वर्षो से देती आ रही है, और आगे भी देती रहेगी। तो हमारा फ़र्ज़ क्या बनता है कि हम किसके पक्ष में बोले, अपनी पसंदीदा पार्टियों के या फिर अपने राष्ट्र के, अपनी जन्मभूमि के, अपने राष्ट्रवाद रूपी अहंकार के।
हम क्यों भूल जाते है कि ये राजनैतिक पार्टिया सिर्फ इसलिए है क्योंकि ये राष्ट्र है, बल्कि हमे तो डर लगते रहता है कि हमारी पसंदीदा पार्टी अगर सत्ता में नही आई तो देश खत्म हो जाएगा।
कभी हमे डराया जाता है कि फलां पार्टी सत्ता में नही आई तो रोहिंग्या इस देश पे कब्ज़ा कर लेंगे, या फिर बंगलादेशी हमारे घरों तक पहुंच जाएंगे। तो कभी डराया जाता है कि किसी पार्टी के सत्ता में आने से देश के लोगो को देश से निकाल के पाकिस्तान भेज दिया जाएगा। दोनों ही गलत है, सर्वप्रथम तो इन डराने वालो को हमारी भारत माँ का इतिहास पढ़ने को बोलना चाहिए। यहां आकर तो सिकन्दर जैसा सूरवीर भी हार गया, तो अगर हम मन मे ठान ले तो कोई दूसरा दुश्मन हमे क्या पराजित कर पायेगा। क्या खुद के लिए वोट मांगने के लिए किसी को भयभीत करना सही है ? मुझे याद है वो भाषण जिनमे कहा जाता था कि वो सरकार में आ गए तो देश मे चारो ओर दंगे होंगे, अंतिम 4 सालो में कितने प्रतिशत दंगे बढ़ गए कोई बता दे। और दंगे नही होने का श्रेय मैं सरकार को दे रहा हूँ इस भूल में ना रहे क्योंकि मैं पहले ही बोल चुका हूं कि मैं अपनी राजनैतिक केचुली से बाहर निकल के अपने विचार रख रहा हूँ। अगर देश मे दंगे नही हो रहे तो इसका पूरा का पूरा श्रेय इस देश के 125 करोड़ देशवासीयों को जाता है। क्योंकि इन राजनीति करने वालो के इतने प्रयासों के बावजूद भी अगर आज ये देश नही जल रहा तो ये उन राजनैतिक पार्टियों के मुँह पे एक करारा तमाचा है।

तो अगर सब कुछ सही चल रहा तो फिर इस लेख की जरूरत क्यों आन पड़ी?

आज हम सबो पे एक पुराना संकट बड़ा रूप ले कर आया है।
अगड़े पिछड़े के लड़ाई के रूप में। और इस लड़ाई को भड़का के इसके दम पे अपनी राजनैतिक जमीन तलाशने वालो की कोई कमी नही। बहुत कोई तो पिछडो का मसीहा बन कर सड़को पे झंडा ले कर उतर गए है, और पिछडो को डरा रहे है कि हमे सत्ता में नही लाये तो दूसरी पार्टी तुमसे तुम्हारा हक तुम्हारा अधिकार छीन लेगी इसीलिए हमे सत्ता में वापिस लाओ। तो कुछ पार्टिया अगड़ों की आवाज बनने की भी कोशिश कर रही। और भारत माँ की भूमि को भारत बंद के नाम पे बर्बाद करने में कोई कमी नही छोड़ रही। मैं विरोध के विरोध में नही हूँ, अगर लोकतंत्र को जिंदा रखना है तो विरोध होना आवश्यक है वरना लोकतंत्र राजतन्त्र का रूप ले लेगा। लेकिन विरोध जताने के तरीके कितने सही है हमारे देश में। कभी किसी गरीब रिक्शे वालो को मारा जाता है तो कभी ऑटो रिक्शावाला की ऑटो का कांच फोड़ देते है। जैसे कि वो ही दिल्ली की गद्दी पर बैठा हुआ है। कभी कभी किसी ट्रेन को रोक के अपने आप को कोई सूरमा समझ लेते है, घर वापिस जाके वो मुद्दे को भूल कर अपने ट्रेन रोकने के किस्से को ऐसे सुनाते है कि जैसे कोई क्रांति का शंखनाद कर के आये हो। कभी सोच के देखा है कि उस ट्रेन के भीतर बैठे हज़ारो यात्री क्यों उस ट्रेन के अंदर बैठे है। कोई अपनी माँ की दवाएं लेकर गांव वापस जा रहा होगा तो कोई अपने बच्चों के खिलौने। कोई इस देश का वीर सिपाही शायद उस ट्रेन में हो जो शायद अपने सात दिनों की छुट्टी में दो दिन से ट्रेन में बैठा हो शेष 5 दिन अपने परिवार के साथ बिताने को। कोई अपनी जीविका के लिए इंटरव्यू देने जा रहा होगा जहां वो ट्रेन रुकने के कारण नही पहुंच पाया। और यही पर ट्रेन रोकने वालो को पहली जीत मिल जाती है, की न कमाऊंगा ना कमाने दूंगा। मेरी माने तो भारत बंद या किसी भी प्रकार की बन्दी इन बेरोजगारों के लिए एक पर्व के समान होता है, 20 दिन पहले से हल्ला करने लगेंगे की फलां तारीख को सब को परेशान करना है। इन्हें लगता है कि ऐसी हरकतों से क्रांति आ जायेगी। मेरा विश्वास मानिए, ऐसी हरकतों से सिर्फ आप किसी राजनैतिक पार्टी को फायदा पहुंचा रहे है। अगर क्रांति लानी है तो अपने विवेक के साथ सड़क पर उतारिये और बिना किसी नेता के वो कर के दिखाइए जिसकी जरूरत इस देश को है, ना कि जिसकी जरूरत आपके नेता जी को है। नही तो मुझे कोई हैरत नही होगी कि ऐसे लोग कल को अपने ही नेता के खिलाफ वैसा ही आंदोलन खड़ा करेंगे क्योंकि कही ना कही वो खुद को ठगा हुआ महसूस करेंगे। अगर क्रांति लानी है तो इन गरीब रिक्शा वालो, ऑटो वालो, या फिर ट्रेन में बैठे हज़ारो लोगो के लिए परेशानी का सबब बनने से बेहतर है कि भगतसिंह सुखदेव राजगुरु या फिर चन्द्रशेखर आज़ाद को आदर्श मानते हुवे अपने प्राणों की आहुति देने का जज़्बा अपने अंदर पालो और फिर सड़क पे उतरो, ना कि ऐसे नेता को आदर्श मान के जिसको वाई श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त होते हुवे रो के बताना पड़ता हो कि उसे उसकी जाती पूछ के मारा जा रहा था, या फिर उसे जिंदा जलाने की साजिश थी जिसके डर से वो मैदान छोड़ के भाग खड़े हुवे, और फिर भी जनता के लिए जान देने की बात करने से बाज नही आते हो।

अंत मे फिर से कहना चाहूंगा कि राष्ट्र की बात कीजिये, राष्ट्रवाद की बात कीजिये।

कुंठित मन से धन्यवाद

आपका सम्मी कुमार

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