बिहार और गरीबी

बिहार मे गरीबी का चोली-दामन का संबंध है । कहा जाता हैं जिस राज्य का शासक अर्ध्ययोग्य हो बह राज्य हमेशा उपेक्षा का पात्र बन कर रह जाता हैं जो कि बिहार के साथ चरितार्थ हैं। बिहार को एक भी योग्य व्यक्ति के हाथों में नहीं सोपा गया जिसका परिणाम यह गरीबी हैं।
बिहार एक ऐसा राज्य जो विकसित राज्यौ का आबादी इस राज्य को तथा राज्यवासियों को हीन भावनाओं से दर्शाता हैं।वास्तविकता  कुछ और ही होता हैं। हम बिहारबासी किसी भी तरह से किसी से भी कम नहीं होने के बाबजूद बिहार और बिहारी दोनों उपेक्षा के शिकार हैं। कुछ तो भौगोलिक एवं राजनीतिक कारणवश तो हैं ही , सबसे ज्यादा समाजिक कारण हैं जो मेरे अपने बिहार को इन असम्मानजनक स्थान पर ला कर खरा किया है। मेरा बिहार जो अकेले राष्ट्र को सबारने मे अहम भूमिका निभाने की क्षमता रखता हो, वो मेरा बिहार अपमान का घुँट पीता है । जब भी बिहार का नाम बिकसित राज्यों के सुची मैं सबसे निचले स्तर पर आता हैं चाहे बो कितने भी बुद्धिजीवियो को अपने गोद से पुरे विश्व को उज्जवलीत कि किया हो तो बिकसित राज्य के सुची में आने का सुनहरा सपना मात्र प्रतित होता हैं।
देश के जिन जिलों में 60 प्रतिशत गरीबी है वहां गरीबों की आबादी 4 करोड़ हैं इनमें से 2.8 करोड़ सिर्फ और सिर्फ बिहार में हैं।
दशक में बिहार से आधी गरीबी घटी, फिर भी देश का सबसे गरीब राज्यो मे बिहार का अब्बल नम्बर पर कायम है।
संयुक्त राष्ट्रसंघ की ओर से जो जारी वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (ग्लोबल मल्टी-डाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स-एमपीआई) की ताजा रिपोर्ट के आधार पर बिहार के हुक्मरानों को थोड़ा सुकून देती है तो माथे पर चिंता की लकीरें भी उकेरती है। सुकून इस बात का है कि बीते दशक में बिहार के एमपीआई में तकरीबन 50% सुधार हुआ है। चिंता इस बात की कि आज भी देश का सबसे गरीब राज्य बिहार है। जबकि देश बिदेश को अनेक प्रशसिनिक अफसर दिया है। स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के तीन मानकों के 10 संकेतकों पर आधारित इस रिपोर्ट का यह तथ्य और भी चौंकाता है कि बिहार के 38 जिलों में से 11 जिले ऐसे हैं जिसमें 10 में से 6 लोग गरीब हैं। यह जिले मुख्यतया उत्तर बिहार में है और अररिया व मधेपुरा में गरीबों की यह संख्या बढ़कर 10 में 7 हो जाती है। देश के 640 जिलों में से वैसे जिले जहां 60% गरीब है, ऐसे जिलों की आबादी करीब 4 करोड़ है।
इस 4 करोड़ लोगों में से आधे से ज्यादा ( 2 करोड़ 80 हजार) लोग बिहार के इन्हीं 11 जिलों में रहते हैं। करीब 1 करोड़ 60 हजार उत्तर प्रदेश में तो शेष छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश और उड़ीसा में रहते हैं। गरीबी का प्रमुख कारण कुपोषण, 6 वर्ष से कम की स्कूली शिक्षा है हालांकि पेयजल, स्कूलों में उपस्थिति और शिशु मृत्यु दर सरीखे मानकों में काफी सुधार हुआ है। राज्यों में सबसे अधिक सुधार झारखंड में हुआ है। सुधार के मोर्चे पर झारखंड से थोड़ा ही पीछे हैं अरुणाचल प्रदेश, बिहार,छत्तीसगढ़ और नागालैंड। इसके बावजूद बिहार सर्वाधिक गरीब राज्य है जहां आधी आबादी गरीब है।
जो गरीब हैं उनमें 25% वह बच्चे हैं जिन्होंने अभी अपना 10 वां जन्मदिन भी नहीं मनाया
एमपी का अलिराजपुर देश का सबसे गरीब जिला है यहां 76.5% आबादी गरीब है जो अफ्रीका के सिएरा लियोन के बराबर है।
इसके अपेक्षा देश के 19 जिलों में सिर्फ 1 % आबादी गरीब है जबकि 42 जिलों में यह 2 से 5% के बीच है।
2005-06 से 2015-16 के बीच गरीबों की संख्या आधी हो गई है। 27 करोड़ लोग इस अवधि में गरीबी निर्धारण के तयशुदा मानकों से ऊपर उठ गए। देश में अभी 36.4 करोड़ लोग मल्टी डाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स (एमपीआई) के दायरे में हैं जो पश्चिमी यूरोपीय देशों यथा जर्मनी, फ्रांस, यूके, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, नीदरलैंड और बेल्जियम की कुल आबादी से अधिक है।
अब हम नौजवानो को सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे अपने बिहार को विकसित नाम का ओहदा से नबाजा जाए जिससे औरों राज्यो के साथ कंधों से कंधा मिलाकर खरा हो सके।

Thanks To Ajay kr.Nirala

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