सामने आने लगे अधिकारियों को खुली छूट देने के दुष्परिणाम, पनप रही कुसंस्कृति

बन बिहारी तिवारी  लेखक (अमृत वर्षा हिंदी दैनिक के  संयुक्त संपादक हैं )

पटना।राज्य में पिछ्ले सप्ताह बड़े पैमाने पर प्रशासनिक फेरबदल हुए। सरकार में ऐसे फेरबदल आमतौर पर होते ही रहते हैं। मगर इस दफा हुए आईएएस-आईपीएस का स्थांतरण प्रकरण अभी तक चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बार के प्रशासनिक स्थांतरण राज्य में नौकरशाहों के बीच पनपते नये अपसंस्कृति को उजागर करती है।स्थानांतरित हुए तीन आइपीएस कटिहार एसपी सिद्धार्थ मोहन जैन ,वैशाली एसपी राकेश कुमार तथा मुंगेर के एसपी आशीष भारती के लिए आयोजित विदाई समारोह विवाद के घेरे में आ गई है। कटिहार एसपी का हर्ष फायरिंग करते हुए वीडियो पूरे देश विदेश में वायरल हो चुका है। तीनों अधिकारियों पर पुलिस मुख्यालय ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कार्रवाई भी किया है। जहां कटिहार एसपी के केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के आदेश को रद्द कर दिया गया है। वही बाकी के दो अन्य अधिकारियों से इस मामले पर स्पष्टीकरण मांगा गया है। वैशाली के एसपी राकेश कुमार तथा मुंगेर के एसपी आशीष भारती पर अपने विदाई समारोह के दौरान गरिमा विरुद्ध आचरण का आरोप है। बिहार में सत्ता के नशे में चूर जनप्रतिनिधियों द्वारा गरिमा विरुद्ध आचरण के तो कई मामले पहले से प्रकाश में आते रहे हैं। मगर तीन-तीन आईपीएस अधिकारियों का ऐसा गरिमा विरुद्ध आचरण का मामला, वह भी एक ही दिन पहली बार ऐसा वाकया सामने आया है। इस मामले पर कई जानकारों का मानना है कि नीतीश सरकार में जिस तरह से नौकरशाहों का मनोबल बढ़ाया गया है ,यह उसी का नतीजा है।
जाहिर सी बात है कि 1990 से 2005 तक के शासनकाल में जैसे दबंग नेताओं ने अनोखे कारनामे कर बिहार की प्रतिष्ठा में चार चांद लगाएं हैं। उसी तरह 2005 से अभी तक के शासनकाल में वही काम अब नौकरशाह करने लगे हैं। पूर्व में भी कई नौकरशाहों के संविधान प्रदत्त अपने शक्ति के दुरुपयोग के मामले सामने आए हैं। मसलन मुजफ्फरपुर के एसएसपी विवेक कुमार या फिर औरंगाबाद के डीएम कंवल तनुज के भ्रष्टाचार का मामला अभी तक ताजा तरीन उदाहरण है। दोनों ही अफसर अभी निलंबित है राज्य के अधिकांश राजनेता हमेशा से सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर अफसरशाही को बढ़ावा देने का आरोप लगाते रहे हैं। सरकार के क्रियाकलापों पर नजर रखने वाले समीक्षकों का भी मानना है कि राज्य सरकार सिर्फ उन्हीं अधिकारियों पर कार्रवाई करती है, जिसका सत्ता के शीर्ष के साथ पटरी नहीं बैठ पाती। पूर्व मे भी कई ऐसे मामले सामने आए हैं जब सरकार ने अपने कथित विश्वासपात्र अधिकारियों का आरोपित होने पर भी बचाव किया है।
किसी भी सरकार में ‘सिस्टम’ तभी तक ठीक रह सकता है जब न्यायपालिका,विधायिका तथा कार्यपालिका अपनी अपनी जिम्मेदारी को निष्पक्ष होकर निभाए। ऐसे में अगर सरकार जनप्रतिनिधियों के आचरण पर कठोर अंकुश लगाते हुए नौकरशाही को खुला ‘छूट’के साथ छोड़ देती है तो इन घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी।

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