क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक

By:-Ajay Kr. Nirala

ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाओं के विस्तार के लिए सन् 1975 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना पूरे देश में की गई । देश के औद्योगिक विकास के लिए अनेक विशिष्ट संस्थाओं जिन्हें विकास बैंक कहा जाता है, की स्थापना की गई । इन विकास बैंकों में IDBI, IFCI, ICICI, SIDBI एवं NABARD प्रमुख हैं ।

इस प्रकार भारत की बैंकिंग प्रणाली में अनेक प्रकार की वित्तीय संस्थाएँ कार्यरत हैं, जैसे- रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया, स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, सार्वजनिक क्षेत्र के व्यापारिक बैंक, निजी क्षेत्र के व्यापारिक बैंक, सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, विकास बैंक, निवेश बैंक आदि ।

इनके अलावा देश में अनेक गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ भी हैं जो वित्तीय व्यवस्था से संबंधित महत्वपूर्ण कार्य करती हैं । केन्द्र सरकार ने देश की बैंकिंग प्रणाली को युपयुक्त एवं विकासात्मक बनाने के लिए समय-समय पर अनेक समितियों का गठन किया है । इन समितियों में सन् 1991 में गठित नरसिंह समिति का विशेष महत्व है ।

इस समिति ने भारतीय बैंकिंग प्रणाली को प्रतिस्पर्द्धात्मक, दक्ष एवं उत्तरदायित्व पूर्ण बनाने से संबंधित अनेक सुझाव दिये । पुनः श्री नरसिंहम की अध्यक्षता में बैंकिंग सुधारों के लिए एक समिति गठित की गई । इस समिति ने 1998 में अपना प्रतिवेदन दिया ।

इस समिति के कुछ महत्वपूर्ण सुझाव निम्न प्रकार हैं:

  1. भारत में बैंकिंग संरचना तीन स्तरीय होना चाहिए । सबसे ऊपर स्टेट बैंक के साथ तीन-चार और बड़े बैंक होना चाहिए तथा निचले स्तर पर ग्रामीण बैंक होने चाहिए जो कृषि एवं सहायक गतिविधियों को साख सुविधा उपलब्ध कराएँ ।
  2. बैंकों को अपने कार्य-कलापों में अधिक स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिए और पूँजी बाजार में उदारता लायी जानी चाहिए । विदेशी बैंकों के लिये भी नई शाखाएँ खोलने के लिए नीति अपनाई जानी चाहिए ।
  3. व्यापारिक बैंकों एवं विकस संस्थाओं (IDBI, ICICI) के कार्य एक समान होते जा रहे हैं । अतः विकास बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को धीरे-धीरे व्यापारिक बैंकों में बदल दिया जाना चाहिए ।
  4. कमजोर बैंकों को या तो मजबूत बनाया जाना चाहिए या उन्हें बन्द कर दिया जाना चाहिए ।
  5. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को देश के तथा विदेशों के पूँजी बाजारों से पूँजी एकत्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ।
  6. उन सभी ऋणों को जिनके वापस मिलने की सम्भावना कम है या बिल्कुल नहीं है कि गारन्टी की रकम से मिलने वाले धन की मात्रा को निर्धारित करना चाहिए । इन परिसपत्तियों में ”परिसम्पत्ति की पुर्ननिर्माण कम्पनी के हाथों कर दिया जाना चाहिए ।”
  7. प्राथमिक क्षेत्र में दी जाने वाली साख पर व्याज सम्बन्धी रियायतों को खत्म कर दिया जाना चाहिए । व्यापारिक बैंक में द्वारा दिये जाने वाले 2 लाख रुपये से कम के ऋण पर से ब्याज सम्बन्धी प्रतिबन्ध हटा दिये जाने चाहिए ।
  8. बैंकों की कुल परिसम्पत्तियों में अनार्जित परिसम्पत्ति (Non-Performing Assets) का प्रतिशत कम होना चाहिए ।
  9. परिसम्पत्ति की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के लिये यदि सरकार की गारन्टी पर दिए गए ऋण भी वापस नहीं हो रहे हैं तो उन्हें भी अनार्जक परिसम्पत्ति (Non-Performing Assets – NPA) माना जाना चाहिए ।

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