गुरु पूर्णिमा का महत्व-

आषाण मास के शुल्क पक्ष में पड़ने वाली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है. हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा की मान्यता सबसे अधिक है. गुरु पूर्णिमा को गुरु पर्व भी कहा जाता है. इस खास दिन पर लोग अपने-अपने गुरुओं की पूजा करते हैं. गुरु की शरण में ही शिष्य के जीवन से गलत मार्ग रूपी अंधकार से छुटाकारे पाते हैं. यह वजह है कि पुराणों के आधार पर ही आषाण मास की पड़ने वाली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रुप में मनाया जाता है. इस बीच हम आपको बताएंगे की इस बार गुरु पूर्णिमा कब मनाई जाएगी, गुरु पूर्णिमा कथा और जीवन में गुरु पूर्णिमा का क्या महत्व है. दरअसल इस बार गुरु पुर्णिमा 16 जुलाई 2019 को मनाई जाएगी

महान संत कबीरदास जी का दोहा “गुरु गोविंद दोहु दोनों खड़े, काहे लागूं पाँय, बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दिया बताएं” इस छोटे से दोहे में गुरु के महत्व का असली कारण छिपा है. दोहे का अर्थ संक्षेप में यह कि भगवान ने भी गुरु को मनुष्य के लिए सबसे अहम बताया है. दअसल जीवन में तरक्की के मार्ग का रास्ता हमें हमारे गुरु ही दिखाते हैं. फिर चाहें वो गुरु आपके माता-पिता, टीचर या को कोई बड़ा संबंधी क्यों न हो. सही और गलत में फर्क हमें एक अच्छा गुरु ही बताता है. इसके अलावा जीवन में बिना गुरु की न तो ज्ञान की प्राप्ती हो सकती है और न ही मोक्ष की. इसलिए संत कबीरदास जी का एक और दोहा इस बार याद आता है कि “गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष, गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटें न दोष” गुरु पूर्णिमा कथा-

दरअसल पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन महाभारत के रचियता कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास का जन्म हुआ था. इस गौर किया जाए गुरु पूर्णिमा की कथा के ऊपर तो वह इस प्रकार है कि महामुनि की पत्नी और परमसती अनुसुइया के सतीत्व का आजमाने के लिए भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने सन्यासी का वेष लेकर नग्न होकर भिक्षा देने के लिए कहा. ऐसे में मां अनुसुइया ने पतिव्रता धर्म को निभाते हुए तीनों देवों को बालकर बनाकर दूध पिलायातीनों देवों ने सती बाद में अनुसुइया के गर्भ से जन्म लिया, जिसमें भगवान शिव ने दुर्वासा, भगवना विष्णु ने दत्तात्रैय और भगवान ब्रह्मा ने चंद्र के रूप में जन्म लिया. कुछ समय बाद दुर्वासा और चंद्र ने अपना अंश का त्याग दत्तात्रैय के साथ कर दिया. भगवना दत्तात्रेय परमयोगी, 84 सिद्धों के आदि गुरु हैं. महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में गुरु पूर्णिमा की सबसे अधिक मान्यता है.
गुरु पूर्णिमा

भारत में प्राचीन समय से ही आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस पर्व को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है क्योंकि प्राचीनकाल से ही सनातन धर्म में गुरु को ज्ञानदाता, मोक्षदाता तथा ईश्वर के समतुल्य माना गया। वेदों और पुराणों में गुरु को ब्रम्हा, विष्णु और महेश सा पूज्य माना गया है।

शास्त्रों में गुरु को अंधाकार दूर करने वाला और ज्ञानदाता बताया गया है। भारत में गुरु पूर्णिमा का पर्व हिंदू धर्म के साथ ही बुद्ध तथा जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा भी मनाया जाता है। बुद्ध धर्म के अनुसार इसी दिन भगवान बुद्ध ने वाराणसी के समीप सारनाथ में पांच भिक्षुओं को अपना पहला उपदेश दिया था।

गुरु पूर्णिमा 2019
वर्ष 2019 में गुरु पूर्णिमा का त्योहार 16 जुलाई, मंगलवार को मनाया जायेगा।

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है
भारत में गुरु पूर्णिमा के मनाये जाने का इतिहास काफी प्राचीन है। जब पहले के समय में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली हुआ करती थी तो इसका महत्व और भी ज्यादे था। शास्त्रों में गुरु को ईश्वर के समतुल्य बताया गया है, यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में गुरु को इतना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

गुरु पूर्णिमा मनाने को लेकर कई अलग-अलग धर्मों के विभिन्न कारण तथा सारी मान्यताएं प्रचलित है, परंतु इन सभी का अर्थ एक ही है यानी गुरु के महत्व को बताना।

हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा से जुड़ी मान्यता
ऐसा माना जाता है कि यह पर्व महर्षि वेदव्यास को समर्पित है। महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन आज से लगभग 3000 ई. पूर्व हुआ था और क्योंकि उनके द्वारा ही वेद, उपनिषद और पुराणों की रचना की गयी है। इसलिए गुरु पूर्णिमा का यह दिन उनकी समृति में भी मनाया जाता है।

सनातन संस्कृति में गुरु सदैव ही पूजनीय रहें है और कई बार तो भगवान ने भी इस बात को स्पष्ट किया है कि गुरु स्वंय ईश्वर से भी बढ़कर है। एक बच्चे को जन्म भले ही उसके माता-पिता देते है लेकिन उसे शिक्षा प्रदान करके समर्थ और शिक्षित उसके गुरु ही बनाते हैं।

पुराणों में ब्रम्हा को गुरु कहा गया है क्योंकि वह जीवों का सृजन करते हैं उसी प्रकार गुरु भी अपने शिष्यों का सृजन करते हैं। इसके साथ ही पौराणिक कथाओं के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने सप्तिर्षियों को योग विद्या सिखायी थी, जिससे वह आदि योगी और आदिगुरु के नाम से भी जाने जाने लगे।

बौद्ध धर्म में गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है
कई बार लोग सोचते है भारत तथा अन्य कई देशों में बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा गुरु पूर्णिमा का पर्व क्यों मनाया जाता है। इसके पीछे एक ऐतिहासिक कारण है क्योंकि आषाढ़ माह के शुक्ल पूर्णिमा के दिन ही महात्मा बुद्ध ने वर्तमान में वाराणसी के सारनाथ में पांच भिक्षुओं को अपना प्रथम उपदेश दिया था।

यहीं पांच भिक्षु आगे चलकर ‘पंच भद्रवर्गीय भिक्षु’ कहलाये और महात्मा बुद्ध का यह प्रथम उपदेश धर्म चक्र प्रवर्तन के नाम से जाना गया। यह वह दिन था, जब महात्मा बुद्ध ने गुरु बनकर अपने ज्ञान से संसार प्रकाशित करने का कार्य किया। यहीं कारण है कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा भी गुरु पूर्णिमा का पर्व इतने धूम-धाम तथा उत्साह के साथ मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा

भारत में प्राचीन समय से ही आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस पर्व को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है क्योंकि प्राचीनकाल से ही सनातन धर्म में गुरु को ज्ञानदाता, मोक्षदाता तथा ईश्वर के समतुल्य माना गया। वेदों और पुराणों में गुरु को ब्रम्हा, विष्णु और महेश सा पूज्य माना गया है।

शास्त्रों में गुरु को अंधाकार दूर करने वाला और ज्ञानदाता बताया गया है। भारत में गुरु पूर्णिमा का पर्व हिंदू धर्म के साथ ही बुद्ध तथा जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा भी मनाया जाता है। बुद्ध धर्म के अनुसार इसी दिन भगवान बुद्ध ने वाराणसी के समीप सारनाथ में पांच भिक्षुओं को अपना पहला उपदेश दिया था।

गुरु पूर्णिमा 2019
वर्ष 2019 में गुरु पूर्णिमा का त्योहार 16 जुलाई, मंगलवार को मनाया जायेगा।

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है
भारत में गुरु पूर्णिमा के मनाये जाने का इतिहास काफी प्राचीन है। जब पहले के समय में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली हुआ करती थी तो इसका महत्व और भी ज्यादे था। शास्त्रों में गुरु को ईश्वर के समतुल्य बताया गया है, यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में गुरु को इतना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

गुरु पूर्णिमा मनाने को लेकर कई अलग-अलग धर्मों के विभिन्न कारण तथा सारी मान्यताएं प्रचलित है, परंतु इन सभी का अर्थ एक ही है यानी गुरु के महत्व को बताना।

हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा से जुड़ी मान्यता
ऐसा माना जाता है कि यह पर्व महर्षि वेदव्यास को समर्पित है। महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन आज से लगभग 3000 ई. पूर्व हुआ था और क्योंकि उनके द्वारा ही वेद, उपनिषद और पुराणों की रचना की गयी है। इसलिए गुरु पूर्णिमा का यह दिन उनकी समृति में भी मनाया जाता है।

सनातन संस्कृति में गुरु सदैव ही पूजनीय रहें है और कई बार तो भगवान ने भी इस बात को स्पष्ट किया है कि गुरु स्वंय ईश्वर से भी बढ़कर है। एक बच्चे को जन्म भले ही उसके माता-पिता देते है लेकिन उसे शिक्षा प्रदान करके समर्थ और शिक्षित उसके गुरु ही बनाते हैं।

पुराणों में ब्रम्हा को गुरु कहा गया है क्योंकि वह जीवों का सृजन करते हैं उसी प्रकार गुरु भी अपने शिष्यों का सृजन करते हैं। इसके साथ ही पौराणिक कथाओं के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने सप्तिर्षियों को योग विद्या सिखायी थी, जिससे वह आदि योगी और आदिगुरु के नाम से भी जाने जाने लगे।

बौद्ध धर्म में गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है
कई बार लोग सोचते है भारत तथा अन्य कई देशों में बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा गुरु पूर्णिमा का पर्व क्यों मनाया जाता है। इसके पीछे एक ऐतिहासिक कारण है क्योंकि आषाढ़ माह के शुक्ल पूर्णिमा के दिन ही महात्मा बुद्ध ने वर्तमान में वाराणसी के सारनाथ में पांच भिक्षुओं को अपना प्रथम उपदेश दिया था।

यहीं पांच भिक्षु आगे चलकर ‘पंच भद्रवर्गीय भिक्षु’ कहलाये और महात्मा बुद्ध का यह प्रथम उपदेश धर्म चक्र प्रवर्तन के नाम से जाना गया। यह वह दिन था, जब महात्मा बुद्ध ने गुरु बनकर अपने ज्ञान से संसार प्रकाशित करने का कार्य किया। यहीं कारण है कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा भी गुरु पूर्णिमा का पर्व इतने धूम-धाम तथा उत्साह के साथ मनाया जाता है।

जैन धर्म में गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है
हिंदू तथा बौद्ध धर्म के साथ ही जैन धर्म में भी गुरु पूर्णिमा को एक विशेष स्थान प्राप्त है। इस दिन को जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा भी काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।

जैन धर्म में गुरु पूर्णिमा को लेकर यह मत प्रचलित है कि इसी दिन जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने गांधार राज्य के गौतम स्वामी को अपना प्रथम शिष्य बनाया था। जिससे वह ‘त्रिनोक गुहा’ के नाम से प्रसिद्ध हुए, जिसका अर्थ होता है प्रथम गुरु। यही कारण है कि जैन धर्म में इस दिन को त्रिनोक गुहा पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

गुरु पूर्णिमा कैसे मनाते हैं – गुरु पूर्णिमा की रिवाज एवं परंपरा
गुरु पूर्णिमा का दिन अन्य दिनों के अपेक्षा काफी महत्वपूर्ण होता है। प्राचीनकाल में इस दिन शिष्य अपने गुरु का आशीर्वाद प्रदान करने के लिए उन्हें विभिन्न प्रकार के भेंट प्रदान किया करते थे और हरसंभव उनकी सेवा करने का प्रयास किया करते थे।

वैसे पहले के अपेक्षा आज के समय में काफी परिवर्तन हो चुका है फिर भी गुरु पूर्णिमा मनाने का एक विशेष तरीका है। जिसे अपनाकर हम गुरु पूर्णिमा का विशेष लाभ प्राप्त कर सकते है।

गुरु पूर्णिमा मनाने के विधि को लेकर शास्त्रों में वर्णन है कि इस दिन हमें सुबह स्नान करके पश्चात सर्वप्रथम भगवान विष्णु तथा शिवजी की पूजा करनी चाहिए और इसके पश्चात गुरु बृहस्पति, महर्षि वेदव्यास की पूजा करके अपने गुरु की पूजा करनी चाहिए।

इस दिन हमें अपने गुरु को फूलों की माला पहनानी चाहिए तथा मिठाई, नए वस्त्र और धन देकर उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए। इसके साथ ही गुरु पूर्णिमा के दिन पूजा करते समय हमे इस बात का ध्यान देना चाहिए कि यदि इस दिन ग्रहण लग रहा हो तो हमें यह पूजा ग्रहण से पहले ही कर लेनी चाहिए।

पुराणों के अनुसार शिवजी ही सबसे पहले गुरु है, इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन उनकी पूजा अवश्य करनी चाहिए। वह शिवजी ही थे, जिन्होंने पृथ्वी पर सबसे पहले धर्म और सभ्यता का प्रचार-प्रसार किया था। यहीं कारण है कि उन्हें आदिगुरु भी कहा जाता है। शिवजी ने शनि और परशुराम जी जैसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों को शिक्षा प्रदान की है।

इसके साथ ही वह योगसाधना के भी जनक है, जिसके कारणवश उन्हें आदियोगी के नाम से भी जाना जाता है। इस योग की शिक्षा को उन्होंने सात लोगो को दिया था, आगे चलकर यही सातों व्यक्ति सप्तर्षि के नाम से प्रसिद्ध हुए। यहीं कारण है कि शिवजी को प्रथम गुरु या गुरुओं का गुरु भी माना जाता है।

santosh baba

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