दलित उधमी उपेंदर रविदास जमीन से आसमान तक सफ़र : चप्पल निर्माण से लेकर एयरलाइंस का मालिक बनने तक तय की रास्ता:

मुई :फिल्म से बिलकुल हटकर भी एक ऐसी ही सच्ची कहानी है। जमुई जिला के झाझा प्रखंड की एक झुग्गी बस्ती में पले -बढ़े एक सख्स उपेन्द्र रविदास झाझा प्रखंड के धोबियाकुरा के रहने बाले है उधोगपति बनने की एक ऐसी कहानी है जो सच्ची है और लोगों के सामने आज भी प्रत्यक्ष मौजूद है। यही कहानी आज कईयों की प्रेरणा का स्रोत बनकर लोगों के सामने खड़ी है। ये सच्ची कहानी है बता दे की उपेन्द्र रविदास बहुत गरीब परिवार से पले बड़े है एक झुग्गी बस्ती में पले -बढ़े है. पारिवारिक स्थिति देख के लग भाग 18 के उम्र में कोलकता चले गये और पहले काम शुरू किया. उसके कुछ दिन बाद कोलकता में एक छोटी जूता के दुकान किये! वो भी दूकान जमीन को गिरबी रख के किये है और उसकी बदोलत जूते के व्यापार से रास्ता खुला और आज उधोगपति बन कर उभरा बता दे की उपेन्द्र रविदास फिलहाल मुमबई में रह रहे है वहीं अपने परिवार के साथ रहते है! बता दे की उपेंदर रविदास उधोगपति बनने के बाद जन्मभूमि की याद आया तो उपेंदर रविदास कुछ साल के बाद घर आए और गिरबी रखा हुआ जमीन को तिन दुगना पैसा दे अपने जमीन छुडाए! अपनी काबिलियत से आज उपेंदर रविदास 6 कमपनी के मालिक है और परत्येक कंपनी के टर्न ऑवर 1000 करोड़ है! कई तखलिफे झेल कर कारोबार शुरू करने वाले उपेंदर रविदास ने जीवन में कई तकलीफों का सामना किया। कई चीज़ों का अभाव झेला है। लेकिन, संघर्ष जारी रखा और कामयाबी की राह में अभावों को आड़े आने नहीं दिया। उपेंदर रविदास की कामयाबी की कहानी से ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्रेरणा मिले इस वजह से उन्हें कई बिहार कई अखबारों में जगह दी गयी है! अपनी कामयाबी की वजह से कई सम्मान और पुरस्कार पाने वाले सरथ बाबू का जन्म जमुई जिला के झाझा इलाके की एक झुग्गी बस्ती में हुआ। परिवार दलित समुदाय से था और बहुत गरीब भी घर-परिवार चलाने की सारी ज़िम्मेदारी पिता लट्टू दास पर था । माँ दिन-रात मेहनत करती थी!

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